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साहित्य, संस्कृत, ज्योतिष, इतिहास, पुरातत्त्व और व्यंग्य के अंतर-राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् पद्मभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास ने उज्जयिनी के गौरवशाली अतीत को पुनर्प्रतिष्ठित करने के लिए अपने जीवन की साँस-साँस समर्पित कर दी। विक्रम के शौर्य और कालिदास की सौंदर्य कल्पना को युग की नई चेतना से संयोजित करने के लिए उन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया। विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्तिमंदिर और कालिदास स्मृतिमंदिर उनके सपनों के साकार ज्योतिर्बिंब हैं। पंडितजी के चुने हुए निबंधों का यह संकलन उनकी साधना, शोध-प्रवृत्ति, संघर्ष, उल्लास और सर्जनात्मक प्रतिभा का संपूर्ण प्रतिनिधित्व करता है। इन निबंधों में एक साधक की सात दशक की सांस्कृतिक यात्रा के पद-चिह्न अंकित हैं। भारतीय संस्कृति, इतिहास, साहित्य, ज्योतिष आदि विभिन्न आयामों का व्यासजी ने मौलिक ढंग से, नई सूझ-बूझ के साथ पर्यवेक्षण किया है। वे एक साथ ज्योतिर्विद् तत्त्व-चिंतक, इतिहास-संशोधक, साहित्यकार, पत्रकार, कर्मठ कार्यकर्ता, उग्र क्रांतिकारी, हिमशीतल मनुष्य और आत्मानुशासित व्यक्ति थे। अखिल भारतीय कालिदास समारोह के जनक और विक्रम विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. व्यास अनेक विधाओं के विदग्ध विद्वान् थे। उनकी रचनावली आए तो एक-दो नहीं 25 खंड भी कम पड़ें, मगर गागर में सागर उनकी सभी विधाओं का रसास्वादन है—उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का यह संचयन|
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Biography;