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भारत की आजादी के साथ जुड़ी देश-विभाजन की कथा बड़ी व्यथा-भरी है । आजादी के सुनहरे भविष्य के लालच में देश की जनता ने देश-विभाजन का जहरीला घूँट दवा की तरह पी लिया, लेकिन यह प्रश्न आज तक अनुत्तरित ही बना हुआ है कि क्या भारत- विभाजन आवश्यक था ही? इस सम्बन्ध में मौलाना अबुलकलाम आजाद ने अवश्य लिखा है और उन्होंने विभाजन की जिम्मेदारी तत्कालीन अन्य नेताओं पर लादी है । डी० राममनोहर लोहिया ने विभाजन के निर्णय के समय होने वाली सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष देखा था और इस पुस्तक में उन्होंने देश- विभाजन के कारणों और उस समय के नेताओं के आचरण पर बड़ी निर्भीकता से विश्लेषण प्रस्तुत किया है । लोहिया जी इस देश-विभाजन को नकली मानते थे और उनका विश्वास था कि एक दिन फिर देश के बँटे हुए टुकड़े एक होकर पूरा भारत एक बनाएँगे । लोहिया का यह सपना सच हो, यही कामना हम भी करते हैं । -ओंकार शरद
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History;
Politics;