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मोहन राकेश की प्रति भा कहानी के क्षेत्र में जगमगाने के बाद नाटक के क्षेत्र में विशेष रूप से चमकी थी । चार-तीन पूर्ण तथा एक अपूर्ण-नाटकों के प्रणयन के अलावा उन्होंने अनेक एकांकी, बीज-नाटक तथा ध्वनि-नाटक लिखे जो रेडियो से समय-समय पर प्रचारित हुए । उनके सभी नाटक साहित्य के उसी तरह अंग हैं जैसे कि रंगमंच के, और यहीं उन्होंने हिंदी की परंपरागत नाटक-विधा का नया मार्ग-दर्शन किया । रात बीतने तक शीर्षक एकांकी में बाद में प्रकाशित 'लहरों के राजहंस' की पूर्व झलक मिलती है । उनके प्रथम और सफल नाटक 'आषाढ का एक दिन का रेडियो-रूपांतरण भी इसी संग्रह में है और उनकी प्रसिद्ध कहानी 'उसकी रोटी.' का भी, जिसे नये सिनेमा-दोलन में सबसे पहले फिल्माया गया । उनके मनोहारी यात्रा-वृत्तांत 'आखिरी चट्टान तक' का रेडियो-रूपांतर भी इस संकलन में संगृहीत है । संस्कृत की अमर नाट्य-कृतियों के प्रति उनका आकर्षण उनके लिए नाटक-विधा में दिलचस्पी और प्रेरणा का कारण बना-इसका एक और प्रमाण यहीं संगृहीत 'स्वप्नवासवदत्तम्' के रेडियो-रूपांत रण में मिलेगा ।
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