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यह ग्रन्थ छत्तीसगढ़ की प्रदर्शनकारी कलाओं पर केन्द्रित है, जिसमें छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख लोकनृत्य, गीत एवं लोकनाट्यों का प्रलेखन किया गया है ! छत्तीसगढ़ की लोक कलाएं अत्यंत समृद्ध हैं ! वे एक सामुदायिक जीवन की धन्यता का उत्सव और उसका मंगलगान हैं ! पुस्तक में लेखक ने छत्तीसगढ़ की ग्रामीण लोककलाओं के साथ इस क्षेत्र में प्रचलित जनजातीय समुदायों की नृत्य-नाट्य परम्पराओं पर भी विचार किया है ! एक सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में छत्तीसगढ़ का यह कला-अध्ययन व्यापक रूप में इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक परिवेश और पर्यावरण तथा प्राचीन भारतीय इतिहास में अपनी सांस्कृतिक पहचान की स्मृतियों को संजोता है ! जिन प्रमुख कला-रूपों को पुस्तक में अभिलेखित किया है, उनमें सेला नृत्य, भोजली, ददरिया, डंडा नाच, भतरा नाच और पंडवानी सहित सभी लोक-शैलियों को शामिल किया गया है ! लोक भाषाओँ के साथ जनजातीय बोलियों में भी विविध नृत्यों और सम्बद्ध गीत-परंपरा के कुछ सुन्दर उदहारण महावर जी ने इस ग्रन्थ में शामिल किए हैं ! यह किताब छत्तीसगढ़ की लोक धर्मी नृत्य-नाट्य तथा गायन-परम्पराओं के विभिन्न कला-रूपों को विस्तार से समझने के साथ उसका विश्लेषणपरक अध्ययन भी प्रस्तुत करती है ! हमें आशा है की पाठकों को यह ग्रन्थ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा से अवगत कराने में सफल होगा !
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Adivasi Literature;
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