Pratinidhi Kavitayen : Vishwanath Prasad Tiwari

Pratinidhi Kavitayen : Vishwanath Prasad Tiwari

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  • ISBN: 9788126726684
  • Edition/Reprint: 2nd
  • Author(s): Vishwanath Prasad Tiwari, Ed. Arvind Tripathi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Product ID: 567024
  • Country of Origin: India
  • Availability: Sold Out

About Product

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के चालीस वर्षों से ऊपर के सक्रिय कवि-कर्म के स$फर को देखते हुए आज यह बात कही जा सकती है कि अपने समकालीनों के बीच रहते हुए भी उन्होंंने अपने समकालीनों का अतिक्रमण किया। वे अपनी पीढ़ी के जिन्हें उन कवियों में शुमार हैं जिनके मितकथन और मितभाषा के प्रयोग सघन और ताकतवर हैं, जो आज उनकी काव्योपलब्धि के रूप में रेखांकित किए जा सकते हैं। विश्वनाथ तिवारी के कवि-कर्म के सरोकारों की गहरी छानबीन की जाए तो उसकी मुख्य थीम में तीन प्रस्थान-बिन्दु चिह्नित होते हैं—स्वाधीनता, स्त्री-मुक्ति और मृत्यु-बोध। गौर से देखें तो उनकी समूची काव्य-यात्रा इन तीन प्रस्थान-बिन्दुओं को लेकर गहन अनुसन्धान करती और इन तीनों जीवन-दृष्टियों का बोध वे भारतीय अंत:करण से करते हैं। स्त्री-अस्मिता की खोज उनके कवि-कर्म के बुनियादी सरोकारों में सबसे अहम है। उनकी कविता के घर में स्त्री के लिए जगह ही जगह है। उनकी दृष्टि में स्त्री के जितने विविध रूप हैं वे सब सृष्टि के सृजनसंसार हैं। उनके कवि की समूची संरचना देशज और स्थानीयता के भाव-बोध के साथ रची-बसी है, काव्यानुभूति से लेकर काव्य की बनावट तक। भोजपुरी अंचल में पले-पुसे और सयाने हुए विश्वनाथ के मनोलोक की पूरी संरचना भोजपुरी समाज के देशज आदमी की है। उनकी कविताओं में इस समाज का आदमी प्राय: —विपत्ति में लाठी की तरह दन्न से तनकर निकल आता है।

Tags: Poems; Representative Poems;

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