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‘आमि ढालिबो करुणा-धारा आमि भांगिबो पाषाण-जिसकावर्णना आमि जगत् प्लाबिया बेड़ाबो गहिया आकुल पागोल पारा’ (मैं बहाऊँगा करुणा-धारा मैं तोड़ूँगा पाषाण-जिसकावर्णना मैं संसार को प्लावित कर घूमूँगा गाता हुआ व्याकुल पागल की तरह) —रवीन्द्रनाथ करुणाधारा से आप्लावित वह विशाल साहित्य जिसके सृजनकर्ता थे रवीन्द्रनाथ, ‘रवीन्द्र-साहित्य’ के नाम से विख्यात है और आज भी मनुष्य के हर विषम परिस्थिति में उसे सटीक पथ की दिशा देता है, निरन्तर कठिनाइयों से जूझते रहने की प्रेरणा देता है, मनुष्यत्व के लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की इच्छा को बलवती बनाता है। ‘रवीन्द्र-साहित्य’ सागर में एक बार जो अवगाहन करता है, वह बहता ही जाता है, डूबता ही जाता है, पर किनारा नहीं मिलता— ऐसा विराट-विशाल जलधि है वह। —इसी पुस्तक से.
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Literary Criticism;
Literature;