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कुँवर नारायण, हिन्दी कविता में एक विशिष्ट नाम-जो लगभग आधी सदी से अपनी सशक्त उपस्थिति से हमारा ध्यान आकृष्ट करता रहा है । 'इन दिनों' -कवि का सातवाँ कविता-संग्रह-हमें फिर से एक बार उनके विशद काव्य-संसार में ले जाता है । भाषा और विषय की विविधता अब तक उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जा चुके हैं । स्थानों और समयों को लेकर ये कविताएँ अपनी एक उन्मुक्त दुनिया रचती हैं जिनमें अनवरत जीवन की खुली आवाजाही है । इनमें टूटने का दर्द भी हे, और उसे बनाने का उत्साह भी । इनमें यथार्थ की पक्की पकड़ है, उसका खुरदुरा स्पर्श, साथ ही उसका सहज सौन्दर्य भी । जीवन और विचारों से जूझती ये कविताएँ उस सन्धिरेखा पर अपने को सम्भव बनाती हैं जो एक दूसरे का निषेध नहीं, गहरी मानवीय संवेदनाओं का आधार है । राजनीतिक और सामाजिक विकृतियों और अराजकता के समय ये कविताएँ समस्याओं से वाबस्तगी को पूरी जिम्मेदारी से प्रतिबिम्बित करती हैं । कभी आयरनी, कभी हमदर्दी के स्वर में वे मनुष्य की सबसे संवेदनशील प्रतिक्रियाओं को जगाती हैं । कुँवर नारायण की कविताओं में सीधी घोषणाएँ और फैसले नहीं हैं, जीवन की बहुतरफा समझ का वह धीरज है जो एक प्रौढ़ जीवन-विवेक और दृढ़ नैतिक चेतना से बनता है । समाज, राजनीति, व्यवसायीकरण आदि को लेकर उनकी कविताओं में दूरन्देशी फिक्र है जो लोक-जीवन के व्यापक हितों को केन्द्र में रखकर सोचती है-आज के मनुष्य की पीड़ा और जिजीविषा के साथ सार्थक संवाद स्थापित करने की कोशिश करती है । क्लासिकल अनुशासन में रहते हुए भी ये कविताएँ आदमी के बुनियादी आवेगों को भी इस तरह व्यक्त करती हैं कि एक सतर्क पाठक उनके साथ आसानी से एकात्म हो सकता है । कई जगह मिथकीय और ऐतिहासिक सन्दर्भों द्वारा कवि वर्तमान में हमारे यथार्थ बोध को अधिक विस्तृत, गहरा और विवेकी बनाता है । ये कविताएँ एक बार फिर आपका परिचय हिन्दी के उस अप्रतिम कवि से कराएंगी जिसकी 'चक्रव्यूह', 'आत्मजयी', 'अपने सामने', 'कोई दूसरा नहीं' जैसी कृतियाँ हिन्दी साहित्य की मूल्यवान धरोहर बन चुकी हैं ।
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Poetry;