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विनोद कुमार शुक्ल ने उपन्यास के क्षेत्र में एक नए मुहावरे का अविष्कार किया है ! वे उपन्यास के फार्म की जड़ता को जड़ से उखाड़कर, सजगतापूर्वक नए फार्म और शिल्प का लहलहाता हुआ नया संसार रचते हैं ! 'हरी घास की छप्पर वाली झोपडी और बौना पहाड़' उनका नया उपन्यास है ! इसे विनोद जी ने किशोर, बड़ो और बच्चों का उपन्यास माना है ! इस उपन्यास में बच्चों की मित्रता के साथ ही अमलताश वाला पेड़ है, हरेवा नाम का पक्षी है, बुलबुल, कोतवाल, शौबीजी, किलकिला, दैयार, दर्जी, मधुमक्खी का छत्ता और छोटा पहाड़ है ! इसे फैंटेसी कहें या जादुई यथार्थवाद या फिर हो सकता है कि आलोचकों को विनोद जी की इस भाषा, शैली और कल्पनाशीलता के लिए कोई नया ही नाम गढ़ना पड़े ! फंतासी की इस बुनावट में एक ताजगी और नयापन है ! गल्प व् कल्प की जुगलबंदी में गद्य और पद्य की सीमा रेखा मिटती जाती है ! सच तो यह है कि विनोद कुमार शुक्ल के कल्पना-जगत में भी वास्तविक संसार ऐसा है जो जीवंत और रचनात्मकता के आनंद से भरा-पूरा है ! उपन्यास में बच्चों की सपनीली दुनिया जैसी सुन्दर बातें हैं ! भाषा की चमक के साथ भाषा का संगीत भी कथा को मोहक बनाता है ! भाषा का आंतरिक गठन कथ्य के साथ ही वर्तमान के बोध को भी जीवंत बनाता है ! हमारी और बच्चों की भागती-दौड़ती जिंदगी में मीडिया की मायावी संस्कृति, सबको बाजार या ग्लोबल मंडी में जकड लेना चाहती है, इन्टरनेट, चिटचेट के साथ उत्तेज्नामूलक समाचारों के बीच परंपरा और संस्कृति में मिली दादी-नानी की कहानियों से बच्चे दूर होते जा रहे हैं ! ऐसे जटिल समय में भी प्रकृति और परंपरा से संपृक्त 'हरी घास की छप्पर वाली झोपडी' उपन्यास की यह नई संरचना अनूठी है !
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Novel;