Jag Darshan Ka Mela

Jag Darshan Ka Mela

₹ 276 ₹295
Shipping: Free
  • ISBN: 9788126730780
  • Edition/Reprint: 1st
  • Author(s): Shivratan Thanvi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Product ID: 567936
  • Country of Origin: India
  • Availability: Sold Out

About Product

कुछ लेख मेरे पढ़े हुए थे, कई अन्य पहली बार पढ़े और छात्रों को भी दिए (यद्यपि आज के सामान्य छात्रों से यह आशा रखना प्राय: व्यर्थ सिद्ध होता है कि वे ध्यान दे-देकर कोई कोई किताब या लेख पढ़ेंगे)। आप सहज, पारदर्शी गद्य लिखते हैं। कई सवाल इस तरह उठाते हैं कि नया पाठक भी समझ जाए। —प्रो. कृष्णकुमार, इन दिनों शिक्षा को बृहत्तर आशयों और आदर्शों से काटकर ‘कौशल विकास’ में बदलने का अभियान जोर-शोर से चल रहा है। सरकारी उपक्रम हों या निजी, हर जगह शिक्षा का लक्ष्य यही मान लिया गया है कि वह इंसानों को व्यावसायिक या तकनीकी कौशल में दक्ष ‘मानव-संसाधन’ में रूपांतरित कर दे। यह ‘कौशल’ नितांत प्राथमिक धरातल का है या परम जटिल स्तर का, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। भाषा, साहित्य, कला और मानविकी आदि इन दिनों, इस शक्तिशाली ‘शिक्षा-दर्शन’ की समझ के चलते, शिक्षा जगत में हर स्तर पर जैसे दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। ऐसे समय में शिवरतनजी के लेखों को पढऩा शिक्षा के वास्तविक आशय, मूल्य-बोध और व्यावहारिक समस्याओं के निजी अनुभवों पर आधारित आकलन से गुजरना है। —पुरुषोत्तम अग्रवाल शिक्षा पर लिखने वाले अधिकतर लोग या तो किसी विचारधारा को टोहते दिखाई देते हैं या आँकड़ों का पुलिंदा खोलकर अच्छी-बुरी तस्वीर उकेरते हुए। शिक्षा पर सिद्धांतों की कमी नहीं है। इसलिए उस पर लिखनेवाले लोग इनमें से या तो किसी सिद्धांत के साथ नत्थी हो जाते हैं, या उसके किसी एक पहलू के आँकड़ों को बटोरकर प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग कम हैं जो तमाम सिद्धांतों को पचाकर और शिक्षा की नई-नई बहसों को समझकर, लेकिन उनमें बहे बिना, स्वतंत्र होकर सोच सकें। शिवरतन थानवी ऐसे चुनिंदा लोगों में ही हैं। —बनवारी शिक्षक एकबारगी बस हो नहीं जाते हैं, वह होते रहने की एक अंतहीन और अनवरत प्रक्रिया है। उसके लिए चाहिए ‘प्रयोगशील सत्य’ में यकीन, और उसका व्यवहार करने का साहस और कौशल। शिवरतनजी पुरानी काट के शिक्षक हैं; लेकिन यहाँ पुराने का मतलब बीत जाने से, अप्रासंगिक या गैरफैशनेबल होने से नहीं है। उनके निबंधों में आपको एक उदग्र सजगता मिलेगी, सावधानी और चौकन्नापन। जो कुछ भी नया दिमाग सोच रहा है, उससे परिचय की उत्सुकता तो है, लेकिन वे सख्ती से हर किसी की जाँच करते हैं। ग्रहणशीलता उनका स्वभाव है और वे शिक्षा और समाज के रिश्ते के अलग-अलग पहलू पर विचार करने के लिए जहाँ से मदद मिले, लेने को तैयार हैं। उन्मुक्त रूप से लेने और देने को ही वे शिक्षा मानते हैं। —अपूर्वानंद शिवरतनजी पिछले छह दशकों से सक्रिय हैं और लगातार एक विद्यार्थी की निष्ठा से पूरी शिक्षा व्यवस्था को देखते-परखते और उस पर लिखते रहे हैं।... किसी किताब की प्रासंगिकता इस बात में भी होती है कि वह अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों से कितना मुठभेड़ करती है। वह लेखक या शिक्षक ही क्या जो समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, जादू-टोने के खिलाफ न लिखे; बराबरी, सामाजिक समरसता की बात न कहे। —प्रेमपाल शर्मा

Tags: Diary;

80274+ Books

Wide Range

12+ Books

Added in last 24 Hours

2000+

Daily Visitor

8

Warehouses

Brand Slider

BooksbyBSF
Supply on Demand
Bokaro Students Friend Pvt Ltd
OlyGoldy
Akshat IT Solutions Pvt Ltd
Make In India
Instagram
Facebook