Kagaji Hai Pairahan

Kagaji Hai Pairahan

₹ 576 ₹695
Shipping: Free
  • ISBN: 9788171789672
  • Edition/Reprint: 6th
  • Author(s): Ismat Chugtai, Tr. Iftikhar Anjum
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Product ID: 567942
  • Country of Origin: India
  • Availability: Sold Out

About Product

उर्दू की विद्रोहिणी लेखिका इस्मत चुग़ताई हिंदी पाठकों के लिए भी उर्दू जितनी ही आत्मीय रही हैं । भारतीय समाज के रूढ़िवादी जीवन मूल्यों और घिसी–पिटी परम्पराओं पर इस्मत चुग़ताई ने अपनी कहानियों से जितनी चोट की है और इसे एक अधिक मानवीय समाज बनाने में जितना बड़ा योगदान किया है, उसकी बराबरी कर पानेवाले लोग बिरले ही हैं । पाठकों के मन में सहज ही यह सवाल उठता रहा है कि इतनी पैनी नज़र से अपने परिवेश को टटोलनेवाली और इतने जीते–जागते पात्र रचनेवाली इस लेखिका की खुद अपनी बनावट क्या है, किस प्रक्रिया में उसका निर्माण हुआ है । इस्मत आपा ने शायद अपने पाठकों की इस जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए ही अपनी आत्मकथा काग़जी है पैरहन शीर्षक से कलमबंद की । कहने को ही यह पुस्तक आत्मकथा है । पढ़ने में यह बाकायदा उपन्यास और उपन्यास से भी ज़्यादा कुछ है । एक पूरे समय और समाज का इतना जीवन्त, इतना प्रामाणिक वर्णन मुश्किल से ही मिल सकता है । तॉल्स्ताय ने गोर्की के बारे में कहा था कि उनकी कहानियाँ दिलचस्प हैं, लेकिन उनका जीवन और भी दिलचस्प है । यही बात इस्मत चुग़ताई के बारे में भी शब्दश कही जा सकती है । तीस के दशक में पर्देदार कुलीन मुस्लिम परिवार में एक लड़की के पढ़ने–लिखने में कितनी मुश्किलें आती होंगी, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है । ये मुश्किलें काग़जी है पैरहन की मुख्य कथावस्तु बनी हैं । लेकिन जो पीड़ा ये मुश्किलें एक जिद्दी लड़की के भीतर पैदा करती रही होंगी, उनका अंदाजा पाठक को खुद ही लगाना होगा क्योंकि अपने दुखों को बयान करना, आत्म–दया दिखाना इस्मत चुग़ताई की फि’तरत ही नहीं रही है । गद्य की लय क्या होती है, कितनी सहजता से यह लय जिंदगी की घनघोर उलझनों का बयान करा ले जाती है, इसका अप्रतिम उदाहरण यह पुस्तक है । खुद इस्मत आपा के शब्दों में लिखते हुए मुझे ऐसा लगता है जैसे पढ़नेवाले मेरे सामने बैठे हैं, उनसे बातें कर रही हूँ और वो सुन रहे हैं । कुछ मेरे हमख़याल हैं, कुछ मोतरिज़ हैं, कुछ मुस्कुरा रहे हैं, कुछ गुस्सा हो रहे हैं । कुछ का वाक’ई जी जल रहा है । अब भी मैं लिखती हूँ तो यही एहसास छाया रहता है कि बातें कर रही हूँ ।

Tags: Autobiography;

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