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कहानी में प्रायः किसी-न-किसी रूप में समाज और मानवीय चिंताओं एवं सरोकारों का लेखा-जोखा रहता है। कहानी मन की गहराइयों और स्वयं को समझने का माध्यम बनती है, तो साथ ही एक अनोखी, अनकही एवं अनछुई झटपटाहट की अभिव्यक्ति को भी स्वर देती है। कहानी अपने तेवर और कलेवर में जिन तथ्यों तथा कथ्य को उघाड़ती, पछाड़ती एवं समेटती चलती है, वह सत्य से भी अधिक सत्य होते हैं। अतः सृजनधर्मिता से गुजरी हुई हर कहानी जीवन की हर संभावना में हस्तक्षेप कर जीवन को सँवारती है, जीवन को रचती है और उसे नया रूप देती है। अनीता प्रभाकर समाज में सदियों से पसरी पितृसत्तात्मक प्रवृत्तियों के चलते औरत के प्रति शोषण, उपेक्षा, उत्पीड़न, अत्याचार को रेखांकित करते हुए उसके विरुद्ध प्रतिरोधात्मक स्वरूप का संघर्ष करने के लिए उसे आगे बढ़ाती हैं। एक ओर कामकाजी औरतों की बढ़ती संख्या के कारण उनकी बढ़ती जिम्मेदारियाँ हैं, तो दूसरी ओर पितृसत्ता के परंपरागत षड्यंत्रों के बदलते रूपों के प्रति उनमें सजगता आई है और वे उसके विरुद्ध विद्रोह करती दिखाई देती हैं। इन कहानियों का एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि इनमें पुरुष में भी परिवर्तन आता दिखाई देता है। इस तरह लेखिका का मानव की संवेदना और मार्मिकता में अटूट विश्वास दिखाई देता है। पठनीयता एवं रोचकता से भरपूर हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए मर्मस्पर्शी कहानियों का संग्रह।.
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