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आम धारणा है कि अर्जुन वास्तव में युद्ध से विरत हो रहे थे, वह तो भगवान् श्रीकृष्ण ने ही उन्हें युद्ध में ढकेल दिया। इस भ्रांत धारणा की जगह इस विषय में सुधीजन सुविचारित मत बना सकें, उनकी सहायता हेतु इस पुस्तक की रचना हुई है। इस हेतु महाभारत युद्ध-पूर्व की हलचलों का संज्ञान लिया है और युद्धभूमि पर पदार्पण के समय की चर्चा भी की गई है। गीता के ज्ञान ने अर्जुन को कतई बरगलाने का काम नहीं किया था, अपितु उन्होंने इस ब्रह्मज्ञान को हृदय से स्वीकार किया था। इसका प्रमाण उनकी शांतिकाल की जिज्ञासा के वर्णन में दिया गया है। इस प्रसंग में ‘अनुगीता’ पर भी संक्षिप्त चर्चा की गई है। इससे महाभारत ग्रंथ के ज्ञान के खजाने के रूप में भी पाठक को प परिचय मिल सकेगा।
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Mahabharat;
Religious;