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मुझे देखना हो तो तूफानी सिंधू की उत्ताल तरंगों में देखो। हिमालय के उत्तुंग शिखर पर मेरी शीतलता का अनुभव करो। सहस्रों सूर्यों का समवेत ताप मेरा ही ताप है। एक साथ सहस्रों ज्वालामुखियों का विस्फोट मेरा ही विस्फोट है। शंकर के तृतीय नेत्र की प्रलयंकर ज्वाला मेरी ही ज्वाला है। शिव का तांडव मैं हूँ; प्रलय में मैं हूँ, लय में मै हूँ, विलय में मैं हूँ। प्रलय के वात्याचक्र का नर्तन मेरा ही नर्तन है। जीवन और मृत्यु मेरा ही विवर्तन है। ब्राह्मांड में मैं हूँ, ब्राह्मांड मुझमें है। संसार की सारी क्रियमाण शक्ति मेरी भुजाओं में है। मेरे पगों की गति धरती की गति है। आप किसे शापित करेंगे, मेरे शरीर को? यह तो शापित है; और जिस दिन मैंने यह शरीर धारणा किया था उसी दिन यह मृत्यु से शापित हो गया था। कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है। यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्यवाणी दुरभिसंधि द्वारका की स्थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय.
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Religious;