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ऐ मेरे देश के नालायक नरड़नारियो! प्रजातंत्र की बिगड़ी हुई बीमारियो! तुम्हें शर्म नहीं आती? जरा सी महँगाई के लिए चिल्लाते हो गेहूँ चावल पाने के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगाते हो अरे! मैं कहता हूँ तुम घास क्यों नहीं खाते हो? गधे तक इसको खा रहे हैं और एक आप हैं कि शरमा रहे हैं तुम मानो या मत मानो मगर यह बात सच्ची है घास कैसी भी हो मगर आश्वासनों से अच्छी है। —इसी संकलन से प्रस्तुत हैं हास्य-व्यंग्य जगत् के विख्यात कवि हुल्लड़ मुरादाबादी की हुल्लड़ मचाती व्यंग्य-हास्य कविताएँ। विश्वास है, योग-प्रयोग और संयोग का यह अद्वितीय संगम सुधी पाठकों को ठहाकों और गुदगुदाहटों की त्रिवेणी में डुबकियाँ लगवाएगा।
Tags:
Comedy;
Poetry;
Satire;