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‘‘हमारी राष्ट्रीयता का आधार ‘भारत माता’ हैं, केवल भारत नहीं। माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जमीन का एक टुकड़ा मात्र रह जाएगा। इस भूमि का और हमारा ममत्व तब आता है, जब माता वाला संबंध जुड़ता है। कोई भी भूमि तब तक देश नहीं किया सकती, जब तक कि उसमें किसी जाति का मातृक ममत्व, यानी ऐसा ममत्व, जैसा पुत्र का माता के प्रति होता है, न हो। वही देशभक्ति है, तथापि देशभक्ति का मतलब जमीन के टुकड़े के साथ प्रेम होना मात्र नहीं है, अन्यथा कई पशु-पक्षी भी तो अपने घर से बहुत प्रेम करते हैं। साँप अपना बिल नहीं छोड़ता, शेर माँद में ही न करता है, पक्षी अपने घोेंसले में रोज लौट आते हैं, किंतु वे देशभक्त हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। मानव भी जहाँ रहता है, वहाँ से उसका कुछ-न-कुछ लगाव हो ही जाता है, फिर भी इतने मात्र से देशभक्ति नहीं आती। उन लोगों का प्रेम ही देशभक्ति कही जाएगी जो देश में एक जन के नाते संबद्ध हैं। पुत्र रूप एक जन और माता रूप भूमि के मिलन से ही देश की सृष्टि होती है। वही देशभक्ति है, जो अमर है।’’ —पं. दीनदयाल उपाध्याय.
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