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इस पुस्तक को मैं अपनी विजय और ‘तथागत’ होने के अनुभव के मधुर स के साथ समाप्त कर सकती थी, पर यह सत्य नहीं होता। जब मैं इस स्वगत कथन को समाप्त करती हूँ, मुझे इस बात का अहसास है कि जीवन में उपलब्धि का उतना महत्त्व नहीं है जितना ज्ञान का। मैं मुक्त नहीं हूँ, लेकिन br>संभवतः मैं मुक्ति के मार्ग पर हूँ। मैं अपनी भ्रमशीलता, भेद्यता और नश्वरता को स्वीकार करती हूँ। स्वीकार्यता और चित्त की स्थिरता जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन ला सकती है। जब हम जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करना रोक देते हैं और बस उनका प्रेक्षण करते हैं कि वे किसलिए हैं, तब ही कभी कुछ अनपेक्षित घट जाता है। हमारे जीवन में होनेवाले अधिकांश संघर्ष इसलिए होते हैं क्योंकि हम चीजों को अपनी इच्छानुसार ढालने के लिए प्रयासरत हो जाते हैं। हमारे जीवन में अधिकांश पीड़ा इसीलिए होती है क्योंकि चीजें हमारी योजनानुसार नहीं होतीं। जब हम शांत भाव से इस सत्य को स्वीकार कर लेते हैं, प्रकृति का नियम हमारे लिए काम करने लगता है और हम ब्रह्मांड के ऐश्वर्य से जुड़ जाते हैं|
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Spirituality;