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“लफ्ज़ आईना, लहजा नश्तर और लिखाई इंद्रधनुष जैसी। यह परिचय है देवांशु की कविताओं का। कहीं से शुरू कीजिए ज़िंदगी की पुस्तक का कोई-न-कोई पन्ना खुल ही जाता है। आसान नहीं होता एक ही कलम से मौसमों के गीत फिर उसी कलम से समाज के मुद्दों का मर्म लिखना, लेकिन देवांशु ने गरजती भावनाओं के हाथों घटाओं के भीगे संदेश भेजे तो संवेदनाओं की जमीन पर आक्रोश के बीज भी बोए, कम देखने को मिलता है ऐसा। इस लिहाज़ से देवांशु का काव्य-संग्रह अनंत संभावनाओं वाले उन गलियारों के दरवाजे खोलता है, जहाँ हर तरफ खामोश जज्बातों की खिड़कियाँ खुली रहती हैं और जिनमें से झाँकती रहती है ज़िंदगी। अशेष शुभकामनाएँ।” —श्वेता सिंह, संपादक, आज तक
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Literature;
Poetry;