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यह पुस्तक भारत में इंडियन मुजाहिदीन के नेतृत्व में चल रहे देसी इसलामी कट्टरवाद के उदय और 1992 में बाबरी ढाँचे को गिराए जाने के बाद से घर में पनप रहे इसलामी जिहादियों पर ध्यान केंद्रित करती है। 1992 की घटना के बाद हुए सांप्रदायिक दंगे, स्टूडेंट इसलामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया और सीमा पार की शक्तियों की मदद से महत्त्वाकांक्षी मुसलिम नौजवानों के एक वर्ग का आतंकवादी बन जाने पर इस पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गई है। घर में पनपे जिहादियों की कहानी टेढ़ी बन गई होती, यदि पाकिस्तान इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आई.एस.आई.), शीर्ष लश्कर-ए-तय्यबा नेतृत्व, अल कायदा और कराची प्रोजेक्ट, जिसके दिमाग की उपज यह इंडियन मुजाहिदीन है, के शामिल होने पर डेविड कोलमैन हैडली और सरफराज नवाज उर्फ सरफर नवाज की गवाही सामने नहीं आती। यह पुस्तक संपूर्ण भारत के जिहादियों में संबंध स्थापित करने और पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बाँग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, यमन तथा सऊदी अरब में स्थित आतंकवादियों के साथ उनके संबंधों की तलाश करने का सबसे पहला प्रयास है। इसलामी कट्टरपंथियों के यथावह और यातना देनेवाले कुकृत्यों पर भी पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। अन आतंकवादियों और राष्ट्रघातकों का लेखा-जोखा है यह पुस्तक।
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