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पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था का संरचनात्मक स्वरूप बहुत तेजी से बदला। फिर चाहे नोटबंदी जैसा कठोर फैसला हो या फिर जी.एस.टी. जैसे चिरप्रतीक्षित बदलाव को आखिरकार लागू करने में सफलता, कई मायनों में भारत का अर्थतंत्र ऐसे अनेक निर्णयों, नीतियों और प्रणालियों के क्रियान्वयन से प्रभावित हुआ है। वर्षों से गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन की समस्याओं से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की सबसे तेज गति से विकास कर रही अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करना वाकई यह दर्शाता है कि किस तेजी से भारत में सर्वांगीण विकास करने की दिशा में भरपूर कोशिशें की गईं। वैश्वीकरण के इस युग में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे नीतिगत, भू-राजनैतिक तथा आर्थिक बदलावों से भी प्रभावित होती है। जहाँ एक ओर वैश्विक आर्थिक विकास दर में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था लाभान्वित हुई, वहीं दूसरी ओर ब्रेक्सिट और अमेरिकी संरक्षणवाद जैसी नीतियों ने कई चुनौतियाँ भी पेश की हैं। देश-विदेश में हो रहे परिवर्तनों के सामान्य जनजीवन से लेकर व्यापक अर्थतंत्र पर पड़ रहे प्रभावों का विश्लेषण करती तथा सुनहरी, सशक्त, समृद्ध, समुन्नत भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वरूपका दिग्दर्शन कराती एक पठनीय कृति|
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Development;
Economics;
India;