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1857 के प्रथम स्वंतत्रता संग्राम में अंग्रेजों द्वारा भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति को जिस प्रकार दबाया गया, उससे यह सुनिश्चित हो गया था कि भारतीय अब शांत बैठनेवाले नहीं हैं। यद्यपि इसके बाद देश भर में स्वतंत्रता आंदोलन के कुछ समय के लिए ठहराव की स्थिति पैदा हो गई थी, लेकिन यह स्थिति हमेशा के लिए बनी रह सकती थी। प्रस्तुत पुस्तक लिखने का उद्देश्य तत्कालीन भारत की स्थिति, अंग्रेजों के शोषण और देशभक्त क्रांतिकारियों की मनोदशा प्रकट करना है, ताकि वर्तमान पीढ़ी में भी देशभक्ति की भावनाओं का संचार हो सके।
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