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ऐसे लोग, जिन्होंने अपनी क्षमता के सार्थक हस्तक्षेप से समूचे राष्ट्र की दिशा बदल दी; ऐसे लोग, जिन्होंने अपनी मानवीय प्रतिबद्धताओं के जरिए देश की धारा बदलने का काम किया; ऐसे लोग, जिन्होंने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को बर्बर नहीं बनने दिया, बल्कि उन्हें विनम्र अभिलाषाओं के साये में पोषित किया—ऐसे सभी लोग विभिन्न राष्ट्रों के इतिहास में अविस्मरणीय हैं। अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भी इसी शृंखला की एक कड़ी थे। घोर दरिद्रता और अभावों में जनमे अब्राहम को शिक्षा के नाम पर पंद्रह वर्ष की उम्र में मात्र अक्षर-ज्ञान हो पाया, लेकिन पढ़ने की तीव्र आकांक्षा के चलते किसी तरह पढ़ना जारी रखा। गरीबी का प्रकोप इतना कि वे अपनी अंकगणित की पुस्तक भी न खरीद सके और अपने मित्र से पुस्तक लेकर उसे पूरा-का-पूरा कॉपी में उतार लिया। प्रस्तुत पुस्तक में उनके जीवन-संघर्ष, देश में प्रचलित दासप्रथा से लड़ते हुए प्रथम बार विधानसभा का सदस्य बनने, गृहयुद्ध का सामना करते हुए राजनीति के शिखर पर पहुँचने और एक बार नहीं, अमेरिका गणराज्य के दो-दो बार राष्ट्रपति बनने की कहानी दर्ज है। हालाँकि अब्राहम लिंकन पर अनेक बार जानलेवा हमले हुए। अंतत: उनके घोर विरोधी एवं षड्यंत्रकारी अपने मकसद में कामयाब हो गए और दीनों का यह मसीहा राष्ट्र के लिए बलिदान हो गया। भूख, गरीबी और संसाधनों का रोना न रोकर जीवन में कुछ विशेष कर गुजरने की आकांक्षा रखनेवाले सुधी पाठकों के लिए सर्वाधिक प्रेरणाप्रद एवं मार्गदर्शक पुस्तक।.
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Autobiography;
Biography;