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आलोक मिश्र की इन शुरुआती कविताओं को देखना असल में एक बनते हुए मन को देखने जैसा है, जिसका अधूरापन दर्शकों या कहें, पाठकों की कल्पनाशीलता के विस्तार के लिए पर्याप्त जगह छोड़ता हुआ दिखता होता है। आप उस अधबनी संरचना से एक सुंदर स्थापत्य की कल्पना कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि इन कविताओं में कवि की प्रतिभा के उस बीज को देखा जा सकता है, जिसके पुष्पित-पल्लवित होने के दिन अभी आगे आएँगे। उनकी कविताएँ उनकी जीवन-यात्रा का हिस्सा हैं। इन कविताओं में लाखन का सपना ही नहीं है, उसके ध्वस्त हो जाने का क्रूर यथार्थ भी है। इस कठिन समय में मनुष्यता के पक्ष को पहचानना आसान नहीं है, क्योंकि आज बड़े पैमाने पर मनुष्यता को धूमिल और ध्वस्त की चौतरफा कार्रवाई की जा रही है तथा समाज को, जाति-धर्म और नस्ल के आधार पर विभाजित करनेवाली शक्तियाँ लगातार सक्रिय हैं। आलोक इन कठिनाइयों से कैसे और कितनी दूर तक लड़ते हैं, उसी पर उनका भविष्य निर्भर करेगा। अभी तो बस एक शुरुआत है।
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Poetry;
Stories;