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‘कितने मोरचे’ पं. विद्यानिवास मिश्र के चौंतीस निबंधों का संकलन है, जो पिछले दशक में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। अपनी अनूठी शैली में मिश्रजी ने इन निबंधों में पाठक को समाज और संस्कृति के अनेक प्रश्नों से रूबरू कराया है। देश, काल, परंपरा और भारतीय मानस के प्रति सहज, पर पैनी दृष्टि रखते हुए ये निबंध आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। इन निबंधों की आधारभूमि हमारे जीवन को ओत-प्रोत करती संस्कृति की स्रोतस्विनी है, जो उन साधारण मनुष्यों की आशाओं, आकांक्षाओं और संघर्षों को सजीव करती है, जो आभिजात्य या ‘एलीट’ दृष्टि से प्राय: अलक्षित रह जाते हैं। पाठकों को झकझोरते ये निबंध तमाम प्रश्नों को छेड़ते हैं और उनका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। संस्कृति में रचे-पगे पंडितजी के चिंतन में पाठकों को अपने मन की गूँज मिलेगी, भूली-बिसरी स्मृति मिलेगी और जिजीविषा—दुर्दमनीय जिजीविषा—के स्रोत मिलेंगे। व्यथा, पीड़ा और वेदना हर कहीं है और आदमी उनसे जूझ रहा है। इन निबंधों में आपको यह सब भी जरूर मिलेगा। अपने आपको पहचानने के व्याज बने ये निबंध पठनीय तो हैं ही, चिंतनीय और मननीय भी हैं।