Karna Tum Kahan Ho

Karna Tum Kahan Ho

₹ 210 ₹300
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  • ISBN: 9789382901594
  • Author(s): Pralya Bhattacharya
  • Publisher: Prabhat Prakashan (General)
  • Product ID: 571027
  • Country of Origin: India
  • Availability: Sold Out
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About Product

छ मानवीय संवेग है, जो देशकाल की परिधि से हटकर अनादिकाल से एक अनबूझी पहेली है। इनसान पहले प्राकृतिक और फिर उस पर लागू हुआ है सामाजिक संबंधों का अनुबंध। जबजब मनुष्य, विशेषकर नारी, प्राकृतिक और स्वाभाविक हुई, तबतब अनुबंध का न्याय अन्याय बनकर उसके सामने अचलायतन हुआ है। स्वाभाविक और प्रकृति जबजब मुखर हुई है, अप्राकृतिक विधिनिषेधों ने उसके सामने गति अवरोधक की भूमिका निभाई है। पितृतांत्रिक समाज ने नारी से आनुगत्य की कामना की है और वैसा करते समय हर देश का पुरुष यह भूला है कि नारी प्राथमिक रूप से माँ है, बाद में पत्नी है। जीवन की इन पहेलियों को सुलझाने का या एक संगत उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास है यह उपन्यास ‘कर्ण तुम कहाँ हो’। बिंबों के माध्यम से उन संवेदनशील तारों को छूने का एक प्रयास है, जिनके सुर से हमें लगाव है, लेकिन जिन्हें हम सुनना नहीं चाहते।.

Tags: History; Culture; Literature;

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