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प्रस्तुत कविता-संग्रह ‘हो हिमालय नया, हो गंगा नयी’ में जहाँ एक ओर प्रणय गीतों को नया आयाम मिला है, वहीं इसमें संगृहीत कविताएँ, चाहे छंदबद्ध हों या छंदमुक्त, संवेदना की अतल गहराइयों को छूने में सर्वथा समर्थ रचनाएँ हैं। श्री मिश्र प्रशासन के गुरुतर दायित्वों के निर्वहण के साथ-साथ इस कृति में अपनी पूरी कल्पनाशीलता, क्षमता एवं निष्ठा के साथ कुछ नया गढ़ने को तत्पर दृष्टगित होतो हैं। यह अपने आप में उल्लेखनीय उपलब्धि है। इस संग्रह की कविताएँ जीवन की विभिन्न परिस्थितियों एवं मन:स्थितियों में एक संवेदनशील मन के चिंतन, उद्वेलन एवं मंथन की अत्यंत सरस एवं सरल अभिव्यक्तियाँ हैं। इन रचनाओं में परम सत्ता के अस्तितत्व एवं कृतित्व की गहरी अनुभूतियों के साथ ही प्रकृति के विविध आयाम, जीवन की आपाधापी, ऊहापोह एवं धरा को शिवमय बनाने की रचनाकार की कसम का सजीव चित्र उभरता है।
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Development;
Theories;