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आँखिन देखी/अंतर लेखी—आनन्द आदीश प्रतिबिंब मन तुरंग को साधना बेहद टेढ़ी खीर। वश में कर सकता इसे कोई एक कबीर।।, आता है जीवन भरा, जाता खाली खोल। मानव की भी त्रासदी ज्यों कुएँ की डोल।।, बोल तोलकर बोलना, थी पुरखों की सीख। मौन रतन अनमोल है, दो दमड़ी की चीख।।, नेता का हर शब्द जब कहलाए कानून। समझो तानाशाह को चढ़ने लगा जुनून।।, पानी से रोशन किए, जिसने बुझे चिराग। उस रूहानी आग में क्या तेरा कुछ भाग।।, केवट का क्या भाग्य जगत को पार लगाता। दो कूलों के बीच स्वयं बस आता-जाता।।, ऐंठें हम सौ बार पर झुक भी लें दो बार। दुखिया की दहलीज पर, दाता के दरबार।।, सहनशीलता संस्कार तो सागर ने पाया। जो छाती पर चढ़ा उसे भी पार लगा लाया।।, आओ चलो मॉल अपने से कुछ खरीद कर आएँ। बीस ग्राम मिट्टी, चुल्लू भर जल/वायु भर लाएँ।।, बार-बार पढ़ते रहें पुरखों लिखे निबंध। नत-मस्तक धारण करें शीतल मंद सुगंध।।
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Poetry;