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फ्रेम से बड़ी तसवीर—अश्विनीकुमार दुबे वर्तमान हिंदी-व्यंग्य संसार की अराजक सी तसवीर में कहीं रिलीफ के कोने की तलाश हो तो अश्विनीकुमार दुबे की व्यंग्य रचनाओं से गुजर जाइए। व्यंग्य को बेहद गंभीर कर्म की भाँति निभाने वाले अश्विनी दुबे में अपने लिखे को लेकर कोई व्यर्थ के मुगालते नहीं हैं, पर अपने लिखे हुए का अतिक्रमण करने की चाहत उनमें शिद्दत से है। इस संग्रह की रचनाएँ उन्हें वहाँ से आगे ले जाती हैं, जहाँ वे अपने पिछले संग्रह में खड़े थे। वे भाषा, शैली तथा व्यंग्य के विषयों को लेकर भी बेहद सजग व्यंग्यकार हैं। उनकी रचनाओं में बहुत सारा ऐसा मिलता है, जिसे वर्तमान व्यंग्य-संसार में अन्यत्र पाने को आप तरस जाते हैं, वे बेचैन रहनेवाले और बेचैन कर देनेवाले व्यंग्यकार हैं। व्यंग्य कॉलमों की रुटीन, पिटी लीक से परे चलने की छटपटाहट उनमें है और उनके व्यंग्य में सर्वत्र दीखती भी है। निश्चित ही यह बेचैनी और छटपटाहट अभी उस स्तर तक नहीं पहुँची है, जहाँ वह अश्विनी की रचनाओं को अद्वितीय बना दे, पर वह है और उसके होने से एक संभावना यह बनी ही रहेगी कि बेचैनी को भविष्य में अश्विनी दुबे और सार्थक तथा रचनात्मक दिशा दे पाएँगे। उनसे यदि व्यंग्य-संसार को ज्यादा उम्मीदें हैं तो यों ही नहीं हैं। वर्तमान व्यंग्य-संग्रह की रचनाओं में इन उम्मीदों के कारण सर्वत्र देखे जा सकते हैं। —डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी
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