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अब्बा की खाँसी अभिभावक और शिक्षक बालकों से आदर्श का अनुकरण कराने के लिए रामलीला एवं जीवनियों को नाटकों में परिवर्तित करने-कराने को प्रोत्साहन देते रहे हैं; लेकिन शिक्षा में मनोविज्ञान के प्रवेश ने बच्चों के नाटकों में इन्हें गौण बना दिया है। अब बच्चों की स्वाभाविक चेष्टाओं को नाटक में प्रस्तुत करना महत्त्वपूर्ण हो गया है तथा आधुनिक बोध में स्वाभाविक क्रियाओं की प्रस्तुति आवश्यक है। वीर रस की प्रस्तुति में बच्चों की स्वाभाविक रुचि रहती है। करुण तथा हास्य के कथानकों को बाल नाटकों का विषय बनाने से दर्शक बालकों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। बाल नाटक शिक्षा की दृष्टि से बहुत उपयोगी हैं। शैक्षिक पाठ्यक्रमों में इनका प्रवेश कलात्मकता, सरलता और रोचकता उत्पन्न करता है। बच्चे स्वयं रंगमंच तैयार करते हैं, संवाद लिखते-बोलते हैं। यत्किंचित् प्रेरणा देने की दिशा आवश्यक होती है। बाल नाटकों के इस संकलन ‘अब्बा की खाँसी’ में विभिन्न भाव, रस, रंग व तेवर के नाटक संकलित हैं। इनकी भाषा सहज, सरल, रोचक व चुटीली है। इसके लघु वाक्य प्रभावोत्पादक हैं। इनमें बोधगम्यता भी है और संप्रेषणीयता भी। विश्वास है, यह कृति पाठकों को पसंद आएगी।
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