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उनके एक समृद्ध दोस्त ने उन्हें समझाया कि बिना फार्म हाउस के शहर के बड़ों में उनका नाम नहीं होना । सफल नेता, उद्योगपति, व्यापारी वाकई बड़े तभी बनते हैं जब उनका फार्म हाउस बने । उसने सलाह दी, '' सत्ताधारियों के पड़ोस से उनसे संपर्क बनेगा । नए धंधों की गुंजाइश बढ़ेगी । यह तुम्हारी कोठी भजन-पूजन के लिए ठीक है, आधुनिक स्टाइल के जीवन के लिए नहीं । '' पटरीवाले के पुत्र को दोस्त की बात जँच गई । वह देश-विदेश घूमा था । उसने तरह-तरह की वाइन-व्हिस्की चखी थी । मीट-बीफ का स्वाद उसे लग चुका था । फार्म हाउस होगा तो ' वीक-एंड ' ही क्यों, हर शाम वहाँ रंगीन हो सकती है । बाहर के मेहमान वहीं ठहर सकते हैं । फार्म हाउस की पार्टियों का मजा ही कुछ और है । वीर भी कई बार उनमें जा चुका है । हलकी रोशनी में पूल के किनारे शराब पीने और नई-नई लड़कियों के साथ ' डांस ' करने के आनंद का कोई डिस्को क्या मुकाबला करेगा! उसने देखा था कि ऐसी पार्टियों में सरकार के आला अफसर ऐसे दुम हिलाते हैं जैसे पार्टी देनेवाले के पालतू कुत्ते हों । अगर गलती से सपत्नीक आए तो मियाँ-बीवी अलग- अलग शिकार करते हैं । -इसी पुस्तक से जीवंत भाषा और रोचक शैली में लिखे इन व्यंग्य लेखों का दायरा समाज, साहित्य, संस्कृति और सियासत तक फैला हुआ है । ये व्यंग्य लेख पाठक को गुदगुदाते भी हैं और सोचने को मजबूर भी करते हैं । ये व्यंग्य आम आदमी के नजरिए से जिंदगी की विषमताओं को उजागर करते हैं ।
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