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वह हतप्रभ होकर विमूढ़-सी रह गई। शरीर बर्फ की सिल्ली-सा ठंडा व बेजान पड़ गया था। बेटे के मन की आहट-भनक वह क्यों नहीं ले पाई? क्यों अपने कामों में इतना अधिक व्यस्त रही? बेटे ने चेन अपने लिए नहीं, किसी और के लिए माँगी होगी, यह विचार क्यों नहीं मन में आया? आँखों से अविरल अश्रुधारा बहती रही, उसका आँचल भिगोती रही। आखों के आगे की धुंध छँटी भी तो कब, जब बेटा नहीं रहा। बेटे के मन की दीवार पर कान लगाकर वह क्यों उसके भीतर का कुछ नहीं सुन सकी? बच्चे की भूख से तो माँ की छाती में दूध भर जाता है, फिर वह अपने बच्चों की जरूरतों को, आवश्यकताओं को क्यों नहीं समझ पाई? उसे लगा जैसे उसका पूरा शरीर काठ का टुकड़ा होकर रह गया है। शरीर की सारी चेतना शून्य हो गई है। शरीर जड़- सा हो चुका है। हाथ उठाने की भी शक्ति नहीं रही थी जैसे। मुँह से एक शब्द नहीं फूटा। गूँगे की तरह वह बस टुकुर-टुकुर देखती रह गई। पहले भी अंधकार था, पर इतना नहीं। अब तो जीवन में घुप्प काला अंधकार है चारों तरफ। वह कितनी भाग्यहीन, अभागिनी माँ थी! उसने अपना सिर झुका लिया। आँसू आँचल भिगोते रहे। सुप्रसिद्ध लेखिका मेहरुन्निसा परवेज का नवीनतम कथा-संग्रह, जो भावना प्रधान होने के साथ-साथ संबंधों की ऊम्भा से अनुप्राणित है। इसमें संगृहीत कहानियों के अपने विविध अर्थ, मर्म एवं सरोकार हैं। इनमें वर्णित वात्सल्य, त्याग व समर्पण जैसे प्रेरक गुणों के साथ ही इसकी मार्मिकता मन के क्रसे को झंकृत करती है। ये सशक्त कहानियाँ क्सै जीवन की त्रासदियों को उकैरती हैं।
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Stories;