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कौन तार ते बीनी चदरिया—महीप सिंह एक शाम वह एक सवारी को लेकर लाजपत नगर जा रहा था। रास्ते में उसे एक दुकान दिख गई। बाहर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था—'देसी शराब का ठेका’ । उसने अपना ऑटो दुकान की ओर मोड़ दिया और बड़ी मिन्नत भरे स्वर में सवारी से बोला, 'साब, मैं अपना राशन-पानी ले लूँबाद को दुकान बंद हो गई तो मैं मर जाऊँगा।’ सवारी ने हँसकर कहा, 'जाओ, ले आओ।’ वह दौड़कर गया और एक बोतल ले आया। बोतल उसने कपड़े में लपेटकर अपने औजारों की डिग्गी में रख दी और ऑटो स्टार्ट करके सड़क पर ले आया। सवारी ने पूछा, 'रोज पीते हो?’ 'रोजकम-से-कम एक अधिया।’ 'क्यों पीते हो?’ 'इसका क्या जवाब दूँ, बस इसकी लत पड़ गई है।’ 'परिवार में कौन है?’ 'बीवी है, दो बच्चे हैं।’ सवारी ने आगे कुछ नहीं पूछा। —इसी संग्रह से सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण करती तथा उसमें फैली कुरीतियों, कुचेष्टाओं व विसंगतियों पर प्रबल प्रहार करती मानवीय संवेदनाओं और मर्म से परिपूर्ण कहानियों का संग्रह।
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