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सागर में एक बूँद, समग्र भाषा के संगृहीत कोश में एक शब्द, भोजन में नमक। समग्र साहित्य में नमक की भूमिका अदा करेंगी ये लघुकथाएँ। परंतु एक चुटकी ही हुआ तो क्या, है तो नमक। आज जिसे सुनो वह समय की कमी की शिकायत करता है । पढ़ने-लिखने, मिलने-जुलने-यहाँ तक कि अपने से बात करने का भी समय नहीं है। ऐसे समयाभाव के युग में उपन्यास और बड़ी कहानियाँ लिखने के समय की कमी लेखिका के लिए है तो पढ़ने के लिए आपके लिए भी। इन लघुकथाओं में भरपूर सामर्थ्य है आपको रुलाने, गुदगुदाने, हँसाने और रोमांचित करने का। अधिकांश कथाएँ आपकी स्मृति में स्थायी स्थान बनाने के लिए आपके सम्मुख उपस्थित हैं। लोक-जीवन में प्रचलित दो-चार कथाएँ भी हैं; सिर्फ भोजन में नमक के बराबर।
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