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अतीत के कंपन सिकंदर ने कहा, “महान् पुरुष, क्या आपने अपने निश्चय को नहीं बदला?” मुनि कैलानोस बोले, “महान् विजेता, यही प्रश्न मैं आपसे पूछता हूँ।” सिकंदर का चेहरा उतर गया। बोला, “यदि हम मान-सम्मान का ध्यान न करके आपको इस आत्मघात से रोक दें?” कैलानोस ठठाकर हँसे। बोले, “कैलानोस का प्राण-त्याग इसी स्थान पर खड़े-खड़े हो सकता है। भारतीय योग में इतना सामर्थ्य है।” उसी समय एक अद्भुत घटना घट गई। न जाने किधर से ओनेसिक्राइटस झपटता हुआ आया और मुनि कैलानोस के गले से लिपट गया, “नहीं, नहीं!” वह चिल्लाया, “मेरे मित्र, यह नहीं होगा।” उसने पास ही खड़े सैनिक की कमर में से खड्ग खींच लिया। “यह रोने का समय नहीं है, बेटी। अंत निकट है, किंतु मुझे उससे पहले तुम दोनों से कुछ कहना है।” दोनों राजकन्याएँ विकल होकर सिंह-माता से लिपट गईं। “कहो, माँ!” जालपा ने कहा, “हमें आज्ञा दो और तुम देखोगी कि चिता हमें तुमसे भी अधिक प्यारी है।” उनके सिरों पर हाथ रखकर वीर माता ने कहा, “नहीं, जालपा, मुझे एक दूसरी ही तरह की बात कहनी है। संभव है, इससे तुम्हें युगों-युगों का विश्वास ढहता प्रतीत हो। लेकिन इसी से देश का भला होता है और जीवन गुलामी के बंधनों से मुक्त होता है। बेटी जालपा, दर्पणी! मुझे जल्दी है, बहुत थोड़े में कहूँगी।” —इसी संग्रह से भारतीय इतिहास के विविध कालों से संबद्ध ऐतिहासिक कहानियाँ, जो अपने समय और समाज के सत्य का उद्घाटन करती हैं। इन कहानियों को पढ़कर भारत के तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक इतिहास को जानने का अवसर प्राप्त होता है।
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Indian History;
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