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‘‘कब लौटेंगे तुम्हारे पतिदेव?’’ ‘‘तीन दिन बाद।’’ ‘‘तो तुम्हारा मन कैसे लगेगा इन तीन दिन तक?’’ उसने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप चाय बनाकर प्याला उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो, ठंडी हो जाएगी।’’ उसने प्याला ले लिया और पीने लगा। उसकी दृष्टि अस्मिता के पैरों पर पड़ी तो उसे फिर से वह कालीघाट की घटना याद आ गई और वह अंतर्मुख हो उठा। उस चुभनेवाले मौन को तोड़ते हुए अस्मिता ने ही कहा था, ‘‘करते क्या हो?’’ ‘‘भ्रमण?’’ ‘‘और कितने दिन तक इस तरह भटकते रहोगे?’’ उसके स्वर में कुछ झुँझलाहट सी थी। कुछ सहानुभूति भी। ‘‘जब तक सत्य की खोज न कर लूँ।’’ ‘‘तुम पागल हो देवाशीष। जीवन का सत्य जीवन से अलग और कुछ नहीं है।’’ —इसी पुस्तक से सुप्रसिद्ध कथाकार र.रौशनदान केलकर पौराणिक, सामाजिक एवं जीवन-जगत् से जुड़े यक्ष-प्रश्नों को आधार बनाकर उपन्यास लिखने के लिए प्रसिद्ध हैं। ‘त्रिपथा’ एक ऐसा ही उपन्यास है, जिसमें पौराणिक आख्यान के माध्यम से नारी और मानवीय संवेदना को रेखांकित किया गया है।.
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