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काका कालेलकर का पूरा नाम दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर था। उन्हें यायावर (घुमक्कड़) भी कहा जाता है। अगर हम काका के जीवनवृत्त का अध्ययन करें तो हमें उनके बहुत से रूप देखने को मिलते हैं—लेखक, शिक्षाविद्, पत्रकार, विद्वान्, समाज सुधारक और इतिहासकार। काका कालेलकर प्रखर देशभक्त थे। महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम के सदस्य थे। शिक्षाविद् के रूप में कालेलकर ने अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की और इसके उपकुलपति भी रहे। सन् 1885 में कर्नाटक के बेलगाँव के बेलगुंडी ग्राम में जनमे कालेलकर को घूमने का बहुत शौक था। उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की और गुजराती, मराठी और हिंदी में अपने यात्रावृत्तांत लिखे। उनके यात्रावृत्तांत इतने सटीक होते हैं कि पाठकों को एहसास होने लगता है, मानो वे भी उसी जगह पहुँचकर साक्षात् उस स्थान को देख रहे हों। उन्होंने गांधीजी पर काफी साहित्य लिखा, जो अब राष्ट्रसंपत्ति के रूप में संरक्षित है। महान् देशभक्त और शिक्षाविद् काका कालेलकर की प्रेरणाप्रद और अनुकरणीय जीवनगाथा।.
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