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किसी एक दिनवैसा ही करते नेताजी हाथ जोड़ कातर स्वर में बोले, “हे आम आदमी! क्या तुम भूत हो?”“नहीं।”“देवी-देवता?”“पागल हो! भला देवी-देवता मेरे जैसे होते हैं!”“फिर क्या हो?”“बताया तो है—आम आदमी।”“मुझे डर लग रहा है। आप मेरा क्या करेंगे?”“क्या करेंगे, यह बाद में तय होगा, अभी तो गौर करें मेरे कहे पर।”“आज्ञा कीजिए।”“फाटक पर आए लोगों से मिलें। उनकी शिकायतों को फौरन दूर कराएँ। क्या करते हैं आप?”“सेवा।”“उसे त्यागें और आगे से सिर्फ काम करें। ठीक?”“ठीक। और कुछ?”—इसी पुस्तक से---आज भ्रष्टाचार के नित नए घोटाले और तरह-तरह के अनाचारों की बाढ़-सी आई हुई है। प्रस्तुत उपन्यास में समाज का विवश और आक्रांत स्वर मुखर हुआ है। मनोरंजन के साथ-साथ जनता की उदासीनता को तोड़नेवाली समस्यामूलक कृति।
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Stories;