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मनोहर पोतदार ' अबोध ' ने ' अकेली ' उपन्यास में मनु और मंजू की उदात्त और निक्लार्थ प्रेम भावना को एक संवेदनशील कलाकार की हैसियत से चित्रित किया है । प्रेम, आदर, विश्वास, आत्मीयता, सदाचार, दया, करुणा-यें सभी भावनाएँ मानवीय मूल्यों की आधार हैं, इनमें रिश्ते की पवित्रता का जतन करने की ताकत है । पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र, गुरु- शिष्य आदि सभी रिश्ते मानवीय मूल्यों की नींव ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की पहचान भी हैं । आज बदलते मानवीय मूल्यों के इस युग में रिश्ते निस्तेज होकर दम तोड़ रहे हैं । लेकिन लेखक अपनी संवेदना के बल पर इन छीजते रिश्तों को बचाने और बढ़ाने में निरंतर जुटा हुआ है । आज समाज में भौतिकता की चकाचौंध में बढ़ोतरी हो रही है तो दूसरी ओर मानवीयता का सतत हास होता जा रहा है । सभी व्यवहार, आचरण, कर्म अमानवीयता की पराकाष्ठा पर पहुँचते जा रहे हैं । डॉ. मनोहर पोतदार ' अबोध ' जैसे संवेदनशील रचनाकार इसमें परिवर्तन लाना अपना दायित्व समझते हैं । प्रस्तुत उपन्यास लेखक की संवेदनशीलता, मानवीयता और मूल्यों के प्रति प्रामाणिकता को रेखांकित करता है । अत: यह उपन्यास अपने आप में अत्यंत रोचक है, हाँ कहीं-कहीं विचलित जरूर करता है । लेकिन उपन्यास के अंतिम मोड़ तक पहुँचते-पहुँचते विचलित मन हमदर्दी से भर जाता है और आँखें आसुओ से । अत्यंत स्पंदनशील, मर्मस्पर्शी, भावनात्मक रिश्तों की भीनी- भीनी महक से महकता रोचक उपन्यास । मनोहर पोतदार ‘अबोध’ ने ‘अकेली’ उपन्यास में मनु और मंजू की उदात्त और निस्स्वार्थ प्रेम भावना को एक संवेदनशील कलाकार की हैसियत से चित्रित किया है। प्रेम, आदर, विश्वास, आत्मीयता, सदाचार, दया, करुणा—ये सभी भावनाएँ मानवीय मूल्यों की आधार हैं, इनमें रिश्ते की पवित्रता का जतन करने की ताकत है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र, गुरु-शिष्य आदि सभी रिश्ते मानवीय मूल्यों की नींव ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की पहचान भी हैं। आज बदलते मानवीय मूल्यों के इस युग में रिश्ते निस्तेज होकर दम तोड़ रहे हैं। लेकिन लेखक अपनी संवेदना के बल पर इन छीजते रिश्तों को बचाने और बढ़ाने में निरंतर जुटा हुआ है। आज समाज में भौतिकता की चकाचौंध में बढ़ोतरी हो रही है तो दूसरी ओर मानवीयता का सतत ह्रास होता जा रहा है। सभी व्यवहार, आचरण, कर्म अमानवीयता की पराकाष्ठा पर पहुँचते जा रहे हैं। डॉ. मनोहर पोतदार ‘अबोध’ जैसे संवेदनशील रचनाकार इसमें परिवर्तन लाना अपना दायित्व समझते हैं। प्रस्तुत उपन्यास लेखक की संवेदनशीलता, मानवीयता और मूल्यों के प्रति प्रामाणिकता को रेखांकित करता है। अतः यह उपन्यास अपने आप में अत्यंत रोचक है, हाँ, कहीं-कहीं विचलित जरूर करता है। लेकिन उपन्यास के अंतिम मोड़ तक पहुँचते-पहुँचते विचलित मन हमदर्दी से भर जाता है और आँखें आँसुओं से। अत्यंत स्पंदनशील, मर्मस्पर्शी, भावनात्मक रिश्तों की भीनी-भीनी महक से महकता रोचक उपन्यास।
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