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‘‘जिस भूमि की मिट्टी से तुम्हारी देह बनी है, जिसकी गंगा का तुमने निर्मल जल पिया है और जिसके गौरव के सामने संसार का कोई देश ठहर नहीं सकता, उस पवित्र भारतभूमि में रहते हुए तुम उसके यश को उज्ज्वल करोगे, यह मुझे पूरी आशा है। इसके साथ ही जिस सरस्वती की कोख से तुमने दूसरा जन्म लिया है, उसे मत भूलना। मैं तुमसे गुरुदक्षिणा नहीं माँगता। गुरुदक्षिणा देना तुम्हारा धर्म है, माँगना मेरा धर्म नहीं। मैं तुमसे यह भी नहीं पूछता कि तुम्हारे राजनीतिक, सामाजिक या मानसिक विचार क्याक्या हैं। मैं केवल तुमसे यही पूछता हूँ कि क्या तुम्हारे सब काम सत्य पर आश्रित हैं या नहीं? स्मरण रखो, यह संसार सत्य पर आश्रित है। सत्य के बिना राजनीति धिक्कारने योग्य है, सत्य के बिना समाज के नियम पददलित करने योग्य हैं। यह सत्य तुम्हारे जीवन का अवलंबन है, तो मुझे न कोई चिंता है और न ही कुछ माँगना है।’’ गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कुलपति स्वामी श्रद्धानंद के दीक्षोपदेश का अंश।
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