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फूलचंद: क्या कर रहे हो, गोकुल? गोकुल: जो कुछ तुम कर रहे हो । तुम तुम किसी सद्भावना या प्रेमवश कर रहे हो और मैं हिंसावश । (हसँता है) जल्दी करिए डॉक्टर साहब! उसका कष्ट दूर हो और मेरा पागलपन । भीडाराम: चमड़ा दे रहे हो और खून भी-और शादी भी नहीं करोगे! फूलचंद: (कुढ़कर) काम बाँट लो न, हवलदारजी! तुम खून दे दो और उसके साथ विवाह कर लो! यह चमड़ा दे देंगे और अपनी हिंसा को साथ लेकर चले जाएँगे! (डाक्टॅर और गोकुल हसँते हैं ?) भीडाराम: ओह! मुझको याद आ गया, यह तो वह बाबू है जिसने माफी माँगी थी । गोकुल: बेशक माफी माँगी थी । मैंने काम ही ऐसा किया था । उस बाबू का पता तो आपको लगा न होगा! शायद मर ही गया हो बिचारा । भीडाराम: ऐसा ही जान पड़ता है । मिलता तो उससे कुछ बात जरूर करता । छोकरा फौज के लायक था । -ड़सी पुस्तक से वर्माजी के इस सामाजिक नाटक में हमारे विद्यार्थियों में आचरण का जो असंयम और भोंडापन तथा साथ ही कभी-कभी उन्हीं विद्यार्थियों में त्याग की महत्ता दिखाई पड़ती है, उसका अच्छा सामंजस्य है । निश्चय ही यह उच्च कोटि की कृति है ।
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