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चक्र से चरखे तक कृष्ण करुणा का साक्षात् रूप हैं और गांधी प्रेम का एक अनोखा आकार। गांधी का जीवन सत्य को प्राप्त करने की प्रक्रिया है। कृष्ण का जीवन सत्य की प्राप्ति के बाद का आचरण है। कृष्ण का जीवन-ध्येय धर्म की संस्थापना था और गांधी का जीवन-ध्येय सत्य की प्राप्ति था। इन दोनों विरल व्यक्तित्वों के जीवन का परीक्षण करने के पश्चात्, उनके कर्मो की मीमांसा करने के पश्चात् क्या हम ऐसा कह सकते हैं कि वे दोनों अपने-अपने उद्देश्य में सफल हुए? सीने पर हाथ रखकर इसे कह पाना दुष्कार है।और फिर भी देश या दुनिया को, और शायद समूची मानव जाति का निर्वहन कृष्ण और गांधी के बिना न कभी हुआ है, न होने वाला है। कृष्ण और गांधी दोनों तो ऐसे प्रतीक हैं जिनके स्पर्श के बिना मानव जाति का बच पाना असंभव है। मनुष्य जाति का यह सद्भाग्य रहा है कि ऐसे प्रतीक समय-समय पर उसे प्राप्त होते रहे हैं। जिस पल मनुष्य जाति ऐसे प्रतीक पैदा करने की क्षमता गँवा देगी, वह इतिहास का अंतिम पल होगा।
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