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पुस्तकालय और समाज ' ऐसा विषय है जिस पर हिंदी भाषा में कोई खास साहित्य उपलब्ध नहीं है । इसके विपरीत अंग्रेजी में इस विषय पर विपुल साहित्य लिखा गया है । इसका कारण यह प्रतीत होता है कि इंग्लैंड तथा अमरीका में पाठकों और पुस्तकालयों के बीच बहुत पहले नैकट्य स्थापित हो चुका था । आजादी के बाद हमारे देश में भी सार्वजनिक पुस्तकालयों के प्रति जागरूकता आई । पुस्तकालय और ' समाज ' तथा ' समाज ' और पुस्तकालय एक-दूसरे केनिकट आने लगे । आज पुस्तकालय हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है और पुस्तकालयों से हमारा संबंध अधिक गहरा हुआ है । प्रस्तुत पुस्तक में इस संबंध के विविध आयामों का विश्लेषण किया गया है, और उन उपायों की व्याख्या की गई है जिनको अपनाकर पुस्तकालय लोगों के और निकट आ सकते हैं । हमारा विश्वास है कि यह पुस्तक सार्वजनिक पुस्तकालयों, पुस्तकालयाध्यक्षों, पुस्तकालय विज्ञान के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों तथा सामान्य पाठक यानी हम सबके लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।
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