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ग्यारह लंबी कहानियाँ—उर्मिला शिरीष इस संग्रह की कहानियों में हमने जो देखा या सुना है, कथा उसे आधारभूमि की तरह बिछाती है। यथार्थ इतना ठोस नहीं है। वह यहाँ उर्वर है। कहानियाँ अनदेखे कोनों की ओर ले जाती हैं। नए रंग, व्यग्रता, अवसाद और दुचित्तेपन की दुनिया में भाषा-आलोक क्रमश: फैलता है। यह उर्मिला शिरीष की अनुपम कला है। उनकी अधिकांश कहानियों में लोगों की बातचीत में कहानी खुलती और खिलती है। उर्मिला बहुत कम उनके बीच में आती हैं। व्यंग्य की बजाय कथा समराग में संबंधों को बारीक रेशों में बुनती है। यथार्थ कौशल और बहुमूल्य तटस्थ दृष्टि हमारे भारतीय पारिवारिक जीवन के ठहरे तह में से भविष्य की तसवीर उकेर लाने में सफल होती है। जैसे हरेक कहानी में हमारे जीवन का समुच्चय निरंतरता का इंगित है। ये कहानियाँ हमें ठहरकर घटना में प्रवेश करने के लिए आमंत्रित करती हैं। इस संग्रह की कहानियाँ हमारे जीवन को धीरे-धीरे प्रस्फुटित होने का अर्थ समझाती हैं, बताती हैं। आखिरकार मटमैले परिदृश्य को समेटने के पहले गहराई से जानना जरूरी है। उर्मिला शिरीष इस अनिवार्यता को इस संग्रह 'ग्यारह लंबी कहानियाँ’ में रचनात्मक ऊर्जा के साथ रखती हैं। ये कहानियाँ अपने समय की चुनौतियों का तो सामना करती ही हैं, समय और समाज से टकराने की चुनौती का सामना करने की ताकत और दृष्टि भी देती हैं। —शशांक.
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