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जैन धर्म के अंतर्गत ‘तेरापंथ’ के उन्नायक आचार्य तुलसी भारत के एक ऐसे संत-शिरोमणि हैं, जिनका देश में अपने समय के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक आदि सभी क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे इसीलिए ‘युग-प्रधान’ कहलाते हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को लक्षित करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार हरीश नवल ने प्रस्तुत उपन्यास पर्याप्त शोध, चिंतन और मनन के बाद कागज पर उतारा है। आचार्य तुलसी का दर्शन, उनके जीवन-सूत्र, सामाजिक चेतना, युग-बोध, साहित्यिक अवदान और मार्मिक तथा प्रेरक प्रसंगों को लेखक ने बखूबी उकेरा है, जो जनमानस को प्रभावित कर सकने में सक्षम है। पाठक ‘रेतीले टीले के राजहंस’ के माध्यम से अनेक ऐसे तत्त्वों, सूत्रों आदि को सुगमता से जान पाएँगे, जो सैद्धांतिक रूप में दुरूह हैं। सुधी पाठक पृष्ठ-दर-पृष्ठ पढ़ते जाएँगे और आचार्य तुलसी के व्यक्तित्व और अवदान से परिचित होते जाएँगे। यह एक ऐसी कृति है, जिसे पढ़कर पाठक निस्संदेह अपनी वर्तमान स्थिति से अपने को ऊँचा उठा पाएँगे।
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Stories;