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रामचरितमानस ' की एक अर्द्धाली है -' पारस परस कुधात सुहाई ', अर्थात् पारस के स्पर्श से लौह जैसी धातुएँ भी सोना हो जाती हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार भी ऐसा ही पारस थे । उनके संपर्क में, सान्निध्य में आनेवाले लोग राष्ट्रनिष्ठ, सच्चरित्र व्यक्ति रूपी सोना बन जाते थे । उनके साहचर्य का सौभाग्य प्राप्त करनेवाले लोगों का कहना है कि जब वे उनसे मिलते थे, उनसे बात करते थे तो अंतर में एक अद्भुत अनुभूति होती थी । उनकी चिंता का प्रमुख विषय राष्ट्र-संघटना होता था । उन्होंने संघ कार्य प्रारंभ किया; अनेक कठिनाइयों आईं । किंतु उनका दृढ़ता से सामना किया, संघटना कार्य में सतत लगे रहे । और आज प्रतिफल सामने है । यह उसी पारस के स्पर्श का परिणाम है कि संघ रूपी पौधा जो उन्होंने रोपा था वह विशाल से विशालतम होता चला गया और आज अक्षय वट सदृश हमारे सम्मुख है और समाजोत्थान में लगा हुआ है । डॉक्टर साहब संघ कार्य हेतु जहाँ भी जाते, लोगों में अपूर्व उल्लास छा जाता । उनके बौद्धिक उनके विचारों को सुनकर लोगों को लगने लगा कि अब सही मार्ग, सही दिशा का निदर्शन होगा । राष्ट्र सेवार्थ लोग उनके साथ आते गए संघटना कार्य बढ़ता गया । संघ रूपी वट वृक्ष के बीज डॉ. हेडगेवार की जीवनगाथा है -पारसमणि । हमें विश्वस है, पाठकगण डॉक्टर साहब के जीवन पर आधारित इस उपन्यास को पढ़कर लाभान्वित होंगे और उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण करेंगे ।
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Novel;