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इसलाम और शाकाहार सुप्रसिद्ध चिंतक और लेखक श्री मुजफ्फर हुसैन की यह पुस्तक ‘इसलाम और शाकाहार’ कुरान और हदीस की रोशनी में लिखी गई है। कुरान के विभिन्न अध्यायों में हिंसा से दूर रहने की जो सीख दी गई है तथा हदीस और कुरान में किस हद तक शाकाहार का समर्थन किया गया है, उसे बहुत कुशलता व सुगमता से प्रस्तुत किया गया है। इसमें ऐसे-ऐसे रहस्य उद्घाटित किए गए हैं जिन्हें पढ़कर आश्चर्य होता है। यह लिखा जाना कि ‘जब इसलाम एक जूँ तक को मारने का आदेश नहीं देता है तो फिर वह विश्व के किसी भी जीव को मारने की वकालत कैसे कर सकता है?’ कुरान में दिए गए तथ्य के अनुसार, जब ईश्वर ने शाकाहार को ही उदरपूर्ति के लिए चुना था तो यह नहीं कहा जा सकता है कि इसलाम शाकाहार का समर्थक नहीं है। वास्तविकता यह है कि इसलाम ने शाकाहारी बनने के लिए असंख्य स्थानों पर प्रेरित किया है। पुस्तक के तीसरे अध्याय का शीर्षक है—‘गाय और कुरान’, जो कृषि एवं भारतीयता के मर्म को स्पष्ट करता है। गाय चूँकि भारतीय अर्थव्यवस्था और अध्यात्म का प्राण है, इसलिए लेखक ने इस विषय पर सार्थक चर्चा की है। बकरा ईद के समय धर्म के नाम पर जिस तरह से हिंसा होती है उसकी इसलाम किस हद तक आज्ञा देता है, इसे कुरान की आयतों द्वारा समझाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया गया है। ‘इसलाम और जीव-दया’ तथा ‘इसलामी साहित्य में शाकाहार’ अध्यायों में की गई चर्चा रोचक व प्रशंसनीय है। ‘इक्कीसवीं शताब्दी शाकाहार की’ अध्याय में लेखक ने चौंका देनेवाले रोचक तथ्य प्रस्तुत किए हैं। निस्संदेह यह कृति भ्रमों को तोड़ने और मिथकों को दूर करने का महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।.
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