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‘धर्म’ शब्द का प्रयोग सामान्य जन-जीवन में जीवन-धर्म, यानी जीवन के गुण या विशेषता के अर्थ में और व्यक्ति के कर्तव्य, मानदंड आदि के अर्थ में प्रचलित रहा है; पर ज्ञान की अंग्रेजी परंपरा में प्रचलित ‘रिलीजन’ शब्द आज के विमर्श में हावी होता गया। रिलीजन, जो मूलतः ‘पंथ’ या ‘मजहब’ (विश्वास या मत) को बताता था, धर्म के लिए अंग्रेजी पर्याय बन गया। ‘धर्म’ पर ‘रिलीजन’ का आरोपण धर्म के अर्थ-संकोच का कारण बन गया। इसका एक घातक परिणाम यह हुआ कि रिलीजन कहलाने के लिए ‘धर्म’ को ‘रिलीजन’ में रूपांतरित होना पड़ा। धर्म की अवधारणा और संदर्भ पर केंद्रित प्रस्तुत पुस्तक वर्तमान समय में एक प्रासंगिक सांस्कृतिक और वैचारिक हस्तक्षेप है, जो ‘धर्म’ के इर्द-गिर्द फैले भ्रमजाल को दूर करने में सहायक होगा और सोचने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दे सकेगा। इसमें संकलित लेख कई पीढि़यों के विद्वानों के विचारों को उपस्थित करते हैं। उन सबका प्रयोजन एक ही है कि धर्म की सम्यक् अवधारणा उद्भासित हो सके और पाठक तार्किक-बौद्धिक आधार पर स्वयं और अपने अनुभव के आलोक में यह निश्चय कर सकें कि धर्म का क्या स्वरूप है, धार्मिक समाज-दृष्टि का क्या आशय है, धर्म हमारे लिए दिशा-निर्देश देनेवाले मार्गद्रष्टा का काम कैसे कर सकता है। धर्म और संस्कृति के विभिन्न पक्षों के निबंध इस संकलन में सम्मिलित हैं। इन सभी को तारतम्य में देखने पर विमर्श की एक संगति उभरती है, जो धर्म की अवधारणा को स्पष्ट करती है। आशा है, यह संकलन पाठकों को रुचेगा।.
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Religious;