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कुरल काव्य—प्रज्ञा श्रमण मुनि अमित सागर विश्वविख्यात संत तिरूवल्लुवर ने ग्रन्थ-रत्न ‘तिरूक्कुरल’ के माध्यम से विश्व-मैत्री और भाईचारे का अलौकिक संदेश दिया है। उनके द्वारा रचित कुरल काव्य दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवादित हुआ है। विदुरनीति, चाणक्यनीति, भर्तृनीति, अरस्तु-सुकरात, कबीर, रहीम, साईं, सतभैया, तुलसी, नानक, तुकाराम, एकनाथ, लोकनाथ, विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ, महात्मा गांधी आदि लोकविश्रुत अनेक उदार-उदात्त विचारोंवाले व्यक्तियों की समग्र सद्विचार-वाणी इस एक ही ग्रन्थ ‘कुरल काव्य’ में संकलित हैं। बालक से लेकर वृद्ध तक, गृहस्थ से संन्यासी तक, विद्यार्थी से शिक्षक तक, किसान से सैनिक तक, साधु-सज्जन से लेकर दुष्ट-दुर्जन तक, तस्कर से ईमानदार तक, कंजूस से दानी तक, चौकीदार से राजा-राष्ट्रपति तक, हर उम्र, जाति-वर्ण-वर्ग के पड़ावों तक का एक अनूठा-अद्भुत, लौकिक-अलौकिक अनुभवपूर्ण ‘नैतिक वैचारिक क्रान्ति’ का खजाना है यह ग्रन्थ ‘कुरल काव्य’। प्रस्तुत ग्रन्थ हर धर्म, मजहब, संस्कृति-सम्प्रदाय के व्यक्ति के लिए पढ़ने योग्य है। इसे सम्मान, पुरस्कार, उत्सव, व्रत, त्योहार, जन्मदिवस, पुण्यस्मृति, उपहार, प्रतियोगिता आदि के उपलक्ष्य में अपने इष्ट मित्रों को भेंट दे सकते हैं।
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Poetry;