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कुर्मी जमात का इतिहास कुर्मी जमात के लोग संपूर्ण भारत में विभिन्न नाम धारण कर फलते-फूलते रहे हैं, परंतु वे सभी अपने को राजा रामचंद्र के दोनों पुत्र लव-कुश के वंशज मानते रहे हैं। कहीं लढ़वा तो कहीं कढ़वा लव-कुश के अपभ्रंशों से जाने जाते रहे हैं। आंध्र प्रदेश में रेड्डी खम्मा से नामित हैं। ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं असम में मोहंती, मंडल, राउत, राय आदि नाम धारित करते रहे। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि हिंदी इलाकों में कुर्मी के नाम से ही जाने जाते रहे हैं। कन्याकुमारी से कश्मीर तक एवं गंधार से मणिपुर, असम, नागालैंड तक लव-कुश के वंशज विभिन्न उपजातियों के नाम धारण कर फैले हुए हैं, परंतु इनकी राष्ट्रीय जात की पहचान नहीं बन पाई। लेखक ने अथक परिश्रम कर शास्त्रों, विदेशी पर्यटकों के स्मरण, इतिहास की पुस्तकों, गजेटियरों, पुरातत्त्व साहित्य, वेदों, अन्य खोज और अध्ययन के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि कुर्मी एक राष्ट्रीय जमात है, जो श्रम की महत्ता, स्वाभिमान, उदात्त चरित्र से सभी पर अपनी छाप छोड़ती है। कुर्मी समाज सबको देते ही हैं, लेकिन लेते कुछ भी नहीं। ये संपूर्ण देश में समाज के अन्नदाता हैं। यह प्रकृत्या कर्मठ, ईमानदार, परोपकार करने में उद्यत, सबके हितचिंतक व आदर्शवादी होते हैं। आज इतिहास को जरूरत है कि इस जमात के राष्ट्रीय चरित्र को उद्घाटित किया जाए। इसी उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी गई है। विश्वास है कि कुर्मी बंधुओं में यह पुस्तक राष्ट्रीय चेतना जगाएगी और अपने को एक राष्ट्रीय जमात होने का गौरवबोध कराएगी।
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History;
Culture;
Religious;
Social;