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‘‘देर हो गई सर; पर बात यह थी कि मेरे एक दोस्त ने किसी का खून कर दिया था और पुलिस उसके पीछे थी। माँ से छिपाकर बड़ी मुश्किल से मैंने उसे पनाह दी; इसलिए देर हो गई।’’ इतनी बात कहकर वह चला गया और मैं सन्न रह गया। दोपहर बाद मैंने उसे बुलाकर बिलकुल शांति से कहा; ‘‘राकेश!’’ ‘‘जी!’’ ‘‘जानते हो मैंने तुम्हें क्यों बुलाया है?’’ ‘‘जी नहीं!’’ ‘‘मेरी बात को शांति से सुनो; इसी में तुम्हारी भलाई है।’’ ‘‘जी!’’ ‘‘तुम एक अच्छे घर के लड़के हो। घर में माँ-बाप और घरवाली है और एक बच्चा भी।’’ ‘‘हूँ।’’ ‘‘इन सबके प्रति तुम्हारा कुछ कर्तव्य है; जो तुम नहीं कर रहे हो। तुम सिगरेट पीते हो और सुना है कि शराब भी पीते हो और जुआ खेलते हो। आज पता चला कि तुम खूनियों को पनाह भी देते हो।’’ —इसी पुस्तक से
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Biography;
Literature;