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भारतीय सेना ने राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अंता किसी भी अन्य लोकतांत्रिक विकासशील देश की अपेक्षा बेहतर तरीके से बनाए रखी है। परंतु इन सफलताओं का श्रेय उसके उच्चतर रक्षा प्रबंधन को कम, सामरिक आयोजना एवं उसके निष्पादन के लिए जिम्मेदार सैन्य कर्मियों को अधिक जाता है। लेकिन कई बार भारत भारी कठिनाइयों को झेलने के बाद मिली सामरिक उपलब्धियों को दीर्घकालिक व सामरिक सफलताओं में बदलने में नाकाम रहा है। ऐसा क्यों होता है? हम सैन्य-संघर्ष से पहले और उसके दौरान राजनीतिक निर्णय किस तरह लेते हैं? रक्षा आयोजना और प्रबंधन में सुधार के लिए क्या किया जाना चाहिए? इन सब प्रश्नों के समाधान के साथ-साथ नए मार्ग प्रशस्त करनेवाली इस पुस्तक में भारत के सैन्य-संघर्षों के कुछ ताजा उदाहरण प्रस्तुत किए गए। इनमें ‘ऑपरेशन पवन’, जिसके दु:खद परिणाम हुए थे, का विवरण आँखें खोल देनेवाला है, और साथ ही मालदीव में किया गया ‘ऑपरेशन कैक्टस’ एक त्वरित कमांडो कार्रवाई भी दी गई है, जिसमें भारतीय सेना ने चौबीस घंटे के भीतर तख्तापलट का प्रयास विफल कर दिया था। पूर्व भारतीय थल सेनाध्यक्ष जनरल वेदप्रकाश मलिक के व्यावहारिक अनुभवों से नि:सृत ये प्रामाणिक, वस्तुनिष्ठ वृत्तांत और आकलन हमें निर्णय-प्रक्रिया की आंतरिक जानकारी देते हैं। इस कृति में भारत के उच्चतर रक्षा प्रबंधन के भावी परिप्रेक्ष्य का आकलन भी दिया गया है। ये विवरण समसामयिक हैं और हर उस व्यक्ति को मुग्ध कर देंगे, जिसका भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से कुछ भी सरोकार है।.
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Bhartiya Thal Sena;
Indian Army;